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सोयाबीन किसानों के लिए काम की बातें: सही बोवाई का समय, बेहतरीन किस्में और पूरी खेती की जानकारी


By Robin Kumar AttriUpdated On: 23-Jun-25 09:06 AM
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ByRobin Kumar AttriRobin Kumar Attri |Updated On: 23-Jun-25 09:06 AM
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जानिए सोयाबीन की खेती का सही समय, उन्नत किस्में, बीज उपचार और ट्रैक्टर व आधुनिक मशीनों से अच्छी पैदावार पाने के आसान तरीके।
Useful Advice for Soybean Farmers: Right Sowing Time, Best Varieties, and Complete Cultivation Guide
सोयाबीन किसानों के लिए उपयोगी सलाह: बुवाई का सही समय, सर्वोत्तम किस्में और पूर्ण खेती मार्गदर्शिका

सोयाबीन खरीफ मौसम की एक प्रमुख तिलहन फसल है, जो भारत में खासतौर पर मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे राज्यों में बड़े पैमाने पर बोई जाती है। यह न केवल किसानों की आमदनी बढ़ाने में मदद करती है, बल्कि मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने में भी अहम भूमिका निभाती है, क्योंकि इसमें नाइट्रोजन बांधने की क्षमता होती है।

आज के समय में खेती के लिए आधुनिक मशीनें जैसे ट्रैक्टर, सीड ड्रिल, स्प्रेयर और रोटावेटर का इस्तेमाल खेती को आसान और ज़्यादा उत्पादक बना रहा है। इस लेख में हम जानेंगे सोयाबीन की खेती से जुड़ी जरूरी बातें जैसे सही बोवाई का समय, बीज की चुनिंदा किस्में, खेत की तैयारी, पोषण और खरपतवार नियंत्रण जो हर किसान के लिए फायदेमंद साबित होंगी।

इस लेख में हम ICAR राष्ट्रीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर की विशेषज्ञ सलाह के आधार पर सोयाबीन की खेती से जुड़ी हर जरूरी जानकारी आपके साथ साझा करेंगे जैसे सही बोवाई का समय, बीज की किस्में, खेत की तैयारी, पोषक तत्व प्रबंधन और खरपतवार नियंत्रण आदि।

भारतीय कृषि में सोयाबीन का महत्व:

  • प्रोटीन और तेल का भरपूर स्रोत

  • मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है (नाइट्रोजन फिक्सिंग)

  • खाने, चारे और तेल उद्योग में ऊंची मांग

  • दोहरी फसल प्रणाली के लिए उपयुक्त

  • टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देता है

सोयाबीन की बोवाई का सही समय:

फसल की अच्छी अंकुरण और सेहत के लिए सही समय पर बोवाई करना बेहद ज़रूरी होता है। विशेषज्ञों का मानना है कि बोवाई तभी शुरू करनी चाहिए जब मानसून आने के बाद इलाके में कम से कम 100 मिमी बारिश हो चुकी हो। बहुत जल्दी या बहुत देर से बोने पर अंकुरण खराब हो सकता है और कीटों का हमला भी बढ़ सकता है, जिससे पैदावार पर असर पड़ता है।

मुख्य क्षेत्रों में सोयाबीन की बोवाई का उपयुक्त समय:

क्षेत्र

आदर्श बोवाई का समय

मध्य प्रदेश (मालवा)

20 जून से 5 जुलाई तक

पूर्वोत्तर पहाड़ी क्षेत्र (MP)

15 जून से 30 जून तक

उत्तरी मैदानी क्षेत्र (MP)

20 जून से 5 जुलाई तक

पूर्वी क्षेत्र (MP)

15 जून से 30 जून तक

दक्षिणी मध्य प्रदेश

15 जून से 30 जून तक

ट्रैक्टर और उपकरणों से खेत की तैयारी:

खेती में ट्रैक्टर से चलने वाले औज़ार जैसे कल्टीवेटर, रोटावेटर और लेवलर खेत की तैयारी को आसान और असरदार बनाते हैं।

मुख्य चरण:

1. मानसून की शुरुआत में सबसे पहले खेत की अच्छी तरह जुताई करें।

2. इसके बाद "पाटा" (लेवलर) की मदद से खेत को समतल करें।

3. जैविक खाद को मिट्टी में मिलाएं:

  • 5–10 टन/हेक्टेयर गोबर की खाद या

  • 2.5 टन/हेक्टेयर पोल्ट्री खाद

इससे मिट्टी की संरचना सुधरती है, नमी बनी रहती है और पोषक तत्वों की मात्रा भी बढ़ती है।

सोयाबीन की सही किस्म का चुनाव कैसे करें:

खेती की अवधि और आपके क्षेत्र की जलवायु के अनुसार बीज का चुनाव बहुत जरूरी होता है, नीचे कुछ प्रमुख किस्मों का विवरण दिया गया है:

फसल अवधि के अनुसार किस्मों का चयन:

फसल अवधि

अवधि (दिनों में)

उपयुक्त किस्में 

कम अवधि वाली

90–100 दिन

JS 20‑29, JS 20‑34

मध्यम अवधि वाली

100–110 दिन

JS 95‑60

लंबी अवधि वाली

110–120 दिन

NRC 37

प्रो टिप:

बीमारी या मौसम की अनिश्चितता से फसल को बचाने के लिए हमेशा 2-3 अधिसूचित किस्मों का मिश्रण बोना चाहिए।

अच्छे बीज और बीज उपचार का महत्व:

स्वस्थ अंकुर और बेहतर फसल के लिए बीज की गुणवत्ता और सही उपचार बहुत ज़रूरी हैं।

बीज चयन के लिए सुझाव:

  • कम से कम 70% अंकुरण क्षमता वाले बीज चुनें।

  • बोने से पहले बीज का अंकुरण परीक्षण ज़रूर करें।

बीज उपचार के प्रमुख चरण:

उपचार प्रकार

अनुशंसित रसायन

मात्रा

फफूंदनाशक

Azoxystrobin + Thiophanate Methyl + Thymethoxam

10 मि.ली./किग्रा

वैकल्पिक फफूंदनाशक

Carboxin + Thiram

3 ग्राम/किग्रा

कीटनाशक

Thymethoxam 30 FS या Imidacloprid

10 मि.ली./किग्रा

जैविक उपचार

Bradyrhizobium + PSB + Trichoderma

5 ग्राम + 10 ग्राम/किग्रा

बीज उपचार का क्रम:

1.सबसे पहले फफूंदनाशक लगाएं → 2. फिर कीटनाशक → 3. फिर जैविक कल्चर → इसके बाद तुरंत बुवाई करें।

वैज्ञानिक बुवाई विधि और बीज दर:

बुवाई के तरीके (ट्रैक्टर से चलने वाले औज़ारों से):

  • सीड ड्रिल

  • ब्रॉड बेड फरो (BBF)

  • रिज-फरो

  • रेज़्ड बेड मेथड

दूरी और बीज दर:

फसल प्रकार

कतारों की दूरी

पौधों की दूरी

बीज की मात्रा (कि.ग्रा./हेक्टेयर)

बुवाई की गहराई

जल्दी पकने वाली किस्में

30 सेमी

5–7 सेमी 

80–90 कि.ग्रा.

2–3 सेमी

मध्यम/लंबी अवधि वाली

30 सेमी

5–7 सेमी

80–90 कि.ग्रा.

2–3 सेमी

संतुलित पोषक प्रबंधन (NPKS):

फसल की अच्छी बढ़वार और पैदावार के लिए संतुलित पोषण जरूरी है। उर्वरक का प्रयोग मिट्टी परीक्षण या अनुशंसित मात्रा के अनुसार करें।

उर्वरक की मात्रा (हेक्टेयर के अनुसार):

उर्वरक  

मात्रा

यूरिया 

56 कि.ग्रा.

SSP (सिंगल सुपर फॉस्फेट)

375-400 कि.ग्रा.

MOP (पोटाश)

67 कि.ग्रा.

DAP (वैकल्पिक)

125 कि.ग्रा. + MOP

बेंटोनाइट सल्फर

25 कि.ग्रा.

मिक्स्ड फर्टिलाइज़र (12:32:16)

200 कि.ग्रा.

जिंक सल्फेट (जरूरत हो तो)

25 कि.ग्रा.

आयरन सल्फेट (जरूरत हो तो)

50 कि.ग्रा.

खरपतवार नियंत्रण- पैदावार को 30–50% तक बचाएं:

खरपतवार पोषक तत्वों की प्रतिस्पर्धा कर फसल की पैदावार कम कर देते हैं। समय पर खरपतवार नियंत्रण बहुत जरूरी है, जिसमें बुवाई से पहले और बाद में कीटनाशी दवाओं का छिड़काव करें।

खरपतवार नियंत्रण योजना:

समय

शाकनाशी

मात्रा

बुवाई से पहले (PPI)

Diclosulam + Pendimethalin

2.51 ली./हेक्टेयर


Fluchloralin

2.22–3.33 ली./हेक्टेयर

बुवाई के बाद (PE)

Diclosulam 84% WDG

26 ग्राम/हेक्टेयर


Sulfentrazone 39.6% SC

0.75 ली./हेक्टेयर


Pendimethalin 30% EC

2.5–3.3 ली./हेक्टेयर

  • नॉर्मल स्प्रेयर से: 450–500 ली./हेक्टेयर

  • पावर स्प्रेयर से: 120 ली./हेक्टेयर

रोग और कीट प्रबंधन:

आम रोग:

  • चारकोल रॉट

  • एन्थ्रेक्नोज

  • कॉलर रॉट

  • पर्पल सीड स्टेन

रोकथाम के उपाय:

  • बीज उपचार में Fluxapyroxad (1 मि.ली./किग्रा.) का उपयोग करें।

  • खेत की नियमित निगरानी करें।

  • फसल चक्र अपनाएं और संक्रमित अवशेषों को हटाएं।

प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा:

अत्यधिक वर्षा, नमी की कमी या अन्य प्राकृतिक समस्याओं से बचने के लिए:

1.बेहतर जल निकासी के लिए BBF या रिज-फरो पद्धति अपनाएं।

2.ज्यादा बारिश वाले इलाकों में खेत में नालियाँ बनाएं।

3.फसल बीमा ज़रूर कराएं।

मध्य प्रदेश के लिए क्षेत्रवार सिफारिशें:

क्षेत्र

बुवाई समय

बीज दर (कि.ग्रा./हे.)

कतारों की दूरी

मध्य MP (मालवा)

20 जून- 5 जुलाई

65

45 सेमी

पूर्वोत्तर पहाड़ियाँ

15 जून- 30 जून

55

45 सेमी

उत्तरी मैदान

20 जून- 5 जुलाई

65

45 सेमी

पूर्वी MP

15 जून- 30 जून

55

45 सेमी

दक्षिणी MP

15 जून- 30 जून

65

30 सेमी

यह भी पढ़ें: आम की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनके प्रभावी समाधान: किसानों के लिए संपूर्ण मार्गदर्शिका

CMV360 कहता है:

सोयाबीन की खेती में अगर किसान हर चरण पर सही तकनीक अपनाएं जैसे समय पर बुवाई, उपयुक्त हाई-यील्ड किस्मों का चुनाव, संतुलित पोषण प्रबंधन और कीट-खरपतवार पर नियंत्रण तो वे अपनी पैदावार में 20-30% तक बढ़ोतरी कर सकते हैं, इससे फसल की गुणवत्ता बेहतर होती है, मिट्टी की सेहत सुधरती है और बाज़ार में अच्छी कीमत भी मिलती है।

इसके साथ ही ट्रैक्टर, सीड ड्रिल और स्प्रेयर जैसी आधुनिक मशीनों का इस्तेमाल खेती को न सिर्फ आसान बनाता है बल्कि मेहनत और समय दोनों की बचत करता है। खेती की ताज़ा तकनीकों और सलाह के लिए किसानों को अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) या कृषि विभाग कार्यालय से जुड़कर नियमित मार्गदर्शन लेते रहना चाहिए।

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