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भारत आम उत्पादन में दुनिया में सबसे आगे है, और यह सिर्फ उत्पादन की बात नहीं है बल्कि आम हमारे गाँव-कस्बों की अर्थव्यवस्था, परंपराओं और भावनाओं से गहराई से जुड़ा हुआ है, उत्तर प्रदेश अकेले ही देश के कुल आम उत्पादन में लगभग एक-तिहाई योगदान देता है।
पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने आम की खेती को और बेहतर बनाने के लिए इज़राइल जैसे देशों के विशेषज्ञों के साथ मिलकर काम किया है, जिससे उत्पादकता बढ़ी है, फलों की गुणवत्ता सुधरी है और निर्यात की संभावनाएं भी खुली हैं।
इस वक्त आम की फसल लगभग 75% तैयार है, और किसान भाई मंडियों की ओर उम्मीद से देख रहे हैं, लेकिन यहीं पर एक चुनौती भरा समय भी शुरू होता है जैसे-जैसे तापमान और नमी बढ़ती है, कीट और रोगों का खतरा भी बढ़ जाता है, जो फलों की गुणवत्ता और उपज पर बुरा असर डाल सकते हैं।
इस लेख में हम किसानों की सहायता के लिए ICAR और CISH (सेंट्रल इंस्टिट्यूट फॉर सबट्रॉपिकल हॉर्टिकल्चर, रहमानखेड़ा, लखनऊ) की सिफारिशों के अनुसार, आम की खेती में लगने वाले प्रमुख रोगों, उनके पहचान के तरीके और वैज्ञानिक व व्यवहारिक नियंत्रण उपायों की पूरी जानकारी साझा कर रहे हैं।
आज के बदलते मौसम और बढ़ती गर्मी-नमी की वजह से आम के बागानों में कीट और रोग पहले से ज़्यादा तेज़ी से फैलते हैं, जलवायु में हो रहे बदलावों ने कीटों के हमले को और भी लगातार और खतरनाक बना दिया है
अगर समय रहते इनके शुरुआती लक्षणों को न पहचाना जाए और रोकथाम न की जाए, तो थ्रिप्स, माइलबग, इनफ्लोरेसेंस मिज जैसे कीट और ब्लॉसम ब्लाइट जैसे फंगल रोग बगीचे की सेहत पर गहरा असर डाल सकते हैं। जिससे न सिर्फ साल की फसल खराब होती है, बल्कि खेत का भविष्य भी खतरे में पड़ जाता है।
फूल और फल सही तरीके से विकसित होते हैं
फलों का आकार, स्वाद और चमक बेहतर होती है
मंडी में अच्छे दाम मिलते हैं, जिससे आमदनी बढ़ती है
अगर निर्यात करना हो, तो गुणवत्ता मानकों पर खरा उतरता है
जब आम के पेड़ फूलों से भर जाते हैं, तभी ये बीमारी चुपके से बाग में दस्तक देती है, ब्लॉसम ब्लाइट एक फफूंद जनित रोग है जो आम के फूलों को ही खत्म कर देता है। CISH (रहमानखेड़ा, लखनऊ) के वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर समय रहते इस पर ध्यान न दिया जाए, तो यह पूरे फूलों के गुच्छों को खराब कर देता है और फल बनने की प्रक्रिया रुक जाती है, जिससे उपज में भारी गिरावट आ सकती है।
यह रोग तब फैलता है जब:
फूल आने के समय ज़्यादा बारिश होती है
बगीचे में नमी बनी रहती है
हवा का बहाव ठीक से नहीं हो पाता
बाग में सफाई और देखरेख की कमी होती है
फूलों का समय से पहले झड़ जाना
छोटे फल सूखकर गिर जाना
फल बनने की प्रक्रिया में रुकावट
फूलों की डंडी का काला या भूरा पड़ना
1. नियमित निगरानी रखें: फूल आने के समय हर 3–4 दिन में बाग का निरीक्षण करें।
2. फूल आने से पहले बगीचे की सफाई करें: पेड़ों की छंटाई करें, खरपतवार निकालें और पुराने पत्तों या टहनियों को हटा दें, ताकि हवा का बहाव ठीक रहे।
3. फफूंदनाशक का सही उपयोग करें: फूलों पर नीचे दिए गए फफूंदनाशकों का छिड़काव करें:
कार्बेन्डाज़िम 12% + मैनकोज़ेब 63% WP
ट्राइफ्लॉक्सीस्ट्रोबिन + टेबुकोनाज़ोल (25% + 50%)
इनका घोल 1 लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें, यह ड्यूल-एक्शन फफूंदनाशक न सिर्फ रोग को रोकता है, बल्कि लगे हुए हिस्सों का इलाज भी करता है। ICAR के विशेषज्ञ इसे खासतौर पर प्रभावी मानते हैं।
आम के बागों में फूल आने के समय एक छोटा सा कीट मैंगो ब्लॉसम मिज, बहुत बड़ा नुकसान कर सकता है। इसका लार्वा फूलों की डंडी (पेडुंकल) के ठीक आधार में छुपकर बैठता है और वहीं से पौधे के पोषण का रास्ता रोक देता है, नतीजा ये होता है कि पूरा फूल सूखकर गिर जाता है, और फल बनने की संभावना ही खत्म हो जाती है।
फूलों के तनों के पास काले या भूरे धब्बे
सूखा और बिखरा हुआ पुष्पक्रम
डंठल में छोटे-छोटे छेद
फूलों का न लगना या समय से पहले मुरझा जाना
1. बगीचे की साफ-सफाई करें: गिरे हुए फूल, सूखी टहनियाँ और खरपतवार समय-समय पर हटा दें।
2. ज़रूरत से ज़्यादा खाद न डालें: खासकर नाइट्रोजन जिससे पौधों में कोमलता आती है, जो मिज को आकर्षित करती है।
3. सही कीटनाशक का प्रयोग करेंः
इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL - 0.3 मि.ली./लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें
या थियामेथोक्सम 25 WG -1 ग्राम/लीटर
बेहतर असर के लिए स्टिकर (1 मि.ली./लीटर) भी मिलाएं
अगर कीट फिर भी न रुके, तो 10-12 दिन बाद छिड़काव दोहराएं
4. कीट पर नज़र रखेंः पीले चिपचिपे जाल बगीचे में लगाएं जिससे मिज की मौजूदगी का अंदाज़ा मिलता है और समय रहते कार्रवाई हो सकती है, ये उपाय कीट के जीवनचक्र को तोड़ने में मदद करते हैं और फूलों को उनके सबसे नाजुक दौर में सुरक्षित रखते हैं।
माइलबग्स छोटे, नरम शरीर वाले सफेद रंग के कीट होते हैं, जो अपने शरीर से कपास जैसे मोमी पदार्थ छोड़ते हैं ये आम के पत्तों, फूलों और नई टहनियों से रस चूसते हैं, जिससे पौधे कमज़ोर हो जाते हैं, जनवरी से मई तक ये सबसे ज़्यादा सक्रिय रहते हैं और अगर वक्त रहते न रोका गया तो खेत (बाग) को भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं।
पत्तों और फूलों पर चिपचिपा स्राव (हनीड्यू)
फलों पर काले रंग की कालिख जैसी परत (सॉटी मोल्ड)
नई कोपलें और फूल सूखने लगते हैं
पौधों की बढ़त रुक जाती है
बगीचे की नियमित सफाई करें - गिरे पत्ते, खरपतवार और मलबा हटाएं।
छंटाई करें - संक्रमित टहनियाँ और शाखाएं काटकर नष्ट करें।
मिट्टी और तनों का प्रबंधन करें - पेड़ के तने पर कीटनाशक धूल लगाएं, जिससे माइलबग नीचे से ऊपर न चढ़ सके।
ज़्यादा नाइट्रोजन से बचें - ज़रूरत से ज्यादा खाद पौधों को कोमल बनाती है, जो कीटों को आकर्षित करती है।
स्पिरोटेट्रामेट 11.01% + इमिडाक्लोप्रिड 11.01% SC का फूलों से पहले छिड़काव करें
जैविक विकल्प के रूप में नीम का तेल (5%) या नीम आधारित कीटनाशकों का इस्तेमाल करें
क्रिप्टोलेमस मॉन्ट्रोज़िएरी जैसे लाभकारी कीट छोड़ें – ये माइलबग्स को प्राकृतिक रूप से खाते हैं
अगर किसान रासायनिक और जैविक उपायों को संतुलित तरीके से अपनाएं, तो माइलबग जैसे कीटों को काबू में रखा जा सकता है, इससे न केवल फसल का स्वास्थ्य बना रहेगा, बल्कि फलों की गुणवत्ता और बाजार के मूल्य भी बेहतर होंगे।
थ्रिप्स बहुत ही छोटे, पतले, काले या भूरे रंग के कीड़े होते हैं, ये पत्तियों, फूलों और नए बने फलों का रस चूस लेते हैं, जिससे आम की फसल को काफी नुकसान होता है, ये कीट खासकर फरवरी से अप्रैल के बीच ज्यादा सक्रिय होते हैं यही वो समय होता है जब पेड़ों में फूल आते हैं और फल बनने की शुरुआत होती है।
अगर थ्रिप्स लग गए हैं, तो कुछ बातें ध्यान देने लायक होती हैं:
पत्तियों पर चांदी जैसे या भूरे रंग के धब्बे
पत्तियों का मुड़ना या सूखना
फल छोटे, टेढ़े-मेढ़े या अधपके रह जाते हैं
फूलों को नुकसान होने से फल सही तरह नहीं बन पाते
1. जल्दी पहचान जरूरी है – जैसे ही नई पत्तियां या फूल निकलने लगें, बाग की निगरानी शुरू कर दें।
2. साफ-सफाई रखें – बगीचे में झाड़-झंखाड़, खरपतवार, गिरे हुए फूल-पत्ते और वैकल्पिक पौधे (जिन पर थ्रिप्स रह सकते हैं) हटा दें।
3. जरूरत पड़ने पर दवा का इस्तेमाल करें:
इमिडाक्लोप्रिड 17.8 SL
टॉल्फेनपाइराड 15% EC
थियामेथोक्साम 25 WG
जो भी दवा लें, सही खुराक और तरीके से स्प्रे करें ताकि असर पूरी फसल पर हो।
थ्रिप्स पर काबू पाने के लिए साफ-सफाई, निगरानी और समय पर दवा का संतुलित इस्तेमाल जरूरी है। इससे फसल की सेहत और गुणवत्ता बनी रहेगी।
आम किसानों के लिए कुछ आख़िरी सुझाव:
जब फसल फूलने और फल बनने के दौर में हो, तो थोड़ी सी सतर्कता आगे चलकर बड़ी पैदावार दिला सकती है इसलिए इस समय कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है:
बाग पर नजर बनाए रखें: हफ्ते में कम से कम दो बार बाग में घूमकर पत्तियों, फूलों और फलों को ध्यान से देखें। किसी भी कीट या बीमारी के शुरुआती लक्षण पकड़ना जरूरी है।
बाग साफ-सुथरा रखें: पुराने पत्ते, गिरे हुए फल और खरपतवार कीटों के अड्डे बन सकते हैं,इसलिए पेड़ों की समय-समय पर छंटाई करें और बाग का मलबा साफ करते रहें।
उर्वरकों का संतुलन बनाए रखें: नाइट्रोजन वाली खाद ज़्यादा देने से पत्तों की बढ़त तो होती है, लेकिन कीटों का हमला भी बढ़ सकता है इसलिए मिट्टी की ज़रूरत के हिसाब से ही खाद डालें।
पीले स्टिकी ट्रैप लगाएं: ये ट्रैप कीटों को पकड़ने के साथ-साथ यह बताने में मदद करते हैं कि कब और कितना खतरा है समय पर कदम उठाने में ये बड़े काम आते हैं।
छिड़काव का सही समय और तरीका अपनाएं: ICAR-CISH जैसी कृषि संस्थाओं द्वारा सुझाए गए दवाओं और उनके छिड़काव के समय का पालन करें अंधाधुंध छिड़काव से बचें।
जैविक उपायों को बढ़ावा दें: क्रिप्टोलेमस बीटल जैसे कीट खाने वाले मित्र कीटों को बाग में छोड़ें साथ ही नीम तेल या नीम से बने उत्पादों का इस्तेमाल करें, ताकि रासायनिक दवाओं की ज़रूरत कम हो।
यह भी पढ़ें: गर्मियों में अपनी फसलों की देखभाल के लिए आसान खेती के टिप्स
अगर हमारे पास सही जानकारी हो और हम वक्त रहते सही कदम उठा लें, तो आम की फसल को बड़ी बीमारियों और कीटों से आसानी से बचाया जा सकता है, ICAR-CISH की सिफारिशें जैसे कि ब्लॉसम ब्लाइट, मैंगो ब्लॉसम मिज, माइलबग और थ्रिप्स जैसी समस्याओं के लिए पूरी तरह वैज्ञानिक और ज़मीन से जुड़ी हुई हैं यानी जो असल में काम करती हैं, वो उपाय।
इन उपायों को अपनाकर किसान न सिर्फ़ अपनी फसल की पैदावार और फल की क्वालिटि बढ़ा सकते हैं, बल्कि अच्छी कमाई भी कर सकते हैं और बाजार में भी उनका फल टिकेगा, चाहे वो लोकल मंडी हो या विदेशी बाजार।
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