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जलवायु परिवर्तन आज के दौर की सबसे बड़ी वैश्विक चुनौतियों में से एक बन चुका है। कृषि क्षेत्र, जो एक ओर पर्यावरण पर प्रभाव डालता है, वहीं दूसरी ओर इसका समाधान भी बन सकता है। इसी दिशा में एक नवाचार है, कार्बन फार्मिंग। यह एक ऐसी पद्धति है जिसमें वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करके उसे मिट्टी, पेड़-पौधों और जैविक घटकों में संग्रहित किया जाता है। इस प्रक्रिया से न सिर्फ जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में मदद मिलती है, बल्कि यह मिट्टी की गुणवत्ता को बेहतर बनाती है और कृषि उत्पादन बढ़ाने में मदद करती हैं साथ ही किसानों को अतिरिक्त आय के अवसर भी प्रदान करती है।
इस लेख में हम कार्बन फार्मिंग की मूल अवधारणा, इसके लाभ, चुनौतियाँ, और भारत सरकार की उन योजनाओं पर चर्चा करेंगे जो इस दिशा में स्थायी कृषि को बढ़ावा दे रही हैं।
कार्बन फार्मिंग एक ऐसी कृषि पद्धति है जिसका उद्देश्य मिट्टी और पौधों में कार्बन को संग्रहित करना होता है, इसमें नो-टिल खेती, कवर क्रॉपिंग, एग्रोफोरेस्ट्री और कंपोस्टिंग जैसी तकनीकों का उपयोग किया जाता है, जो वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) को अवशोषित करके मिट्टी में जमा करने में मदद करती हैं। इस प्रक्रिया से मिट्टी की उर्वरता में सुधार होता है, फसल उत्पादन बढ़ता है, और साथ ही ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम होकर जलवायु परिवर्तन से मुकाबला करने में भी सहायता मिलती है।
• जलवायु परिवर्तन में कमी: कार्बन फार्मिंग के ज़रिए मिट्टी में कार्बन को सुरक्षित रूप से जमा किया जाता है, जिससे वातावरण में मौजूद ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा कम होती है, जिससे जलवायु परिवर्तन के असर को घटाने में मदद मिलती है।
• मृदा स्वास्थ्य में सुधार: संरक्षण-कृषि और जैविक पद्धतियाँ मिट्टी की बनावट को बेहतर बनाती हैं, उसमें नमी बनाए रखने में मदद करती हैं और फसलों के लिए जरूरी पोषक तत्वों की उपलब्धता को बढ़ाती हैं, जिससे खेती की उत्पादकता भी बेहतर होती है।
• जैव विविधता को बढ़ावा: कार्बन फार्मिंग से खेतों में पारिस्थितिक संतुलन बनता है, जो फायदेमंद कीटों को आकर्षित करता है और इससे फसल की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और कीटनाशकों पर निर्भरता कम होती है।
• आर्थिक लाभ के अवसर: इस तरह की तकनीकों को अपनाकर किसान कार्बन क्रेडिट बाजार से अतिरिक्त आय अर्जित कर सकते हैं, यह आय का एक नया स्रोत बनता है, जो किसानों की आर्थिक स्थिति को मजबूत करता है।
• जल संरक्षण: कार्बन फार्मिंग मिट्टी की जल धारण क्षमता को बढ़ाती है, जिससे बार-बार सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती और पानी की बचत होती है।
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भारत में खेती को ज़्यादा टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिए सरकार ने कई अहम योजनाएँ शुरू की हैं। इनमें से कुछ योजनाएँ सीधे तौर पर कार्बन फार्मिंग से जुड़ी हैं, जबकि कुछ इसके लक्ष्यों को मजबूत बनाती हैं, नीचे ऐसी ही 9 प्रमुख योजनाओं का ज़िक्र किया गया है जो किसानों को कार्बन फार्मिंग अपनाने में मदद करती हैं।
• अवलोकन: यह मिशन राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (NAPCC) का हिस्सा है, जिसका मकसद मिट्टी की सेहत, पानी के समझदारी से उपयोग और जैविक खेती को बढ़ावा देकर खेती को ज़्यादा टिकाऊ बनाना है।
• प्रोत्साहन: किसानों को जलवायु-स्थिर तकनीकें अपनाने, मिट्टी के बेहतर प्रबंधन और जल संरक्षण उपायों के लिए आर्थिक सहायता और सब्सिडी मिलती है। ये सभी पहलू कार्बन फार्मिंग को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं।
• अवलोकन: इस योजना का मकसद है खेती में पानी का बेहतर उपयोग करना और यह सुनिश्चित करना कि देश का हर खेत पानी से जुड़ सके यानी हर खेत को पानी उपलब्ध हों।
• प्रोत्साहन: योजना के तहत ड्रिप और स्प्रिंकलर जैसी सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों को बढ़ावा दिया जाता है, जिससे मिट्टी की नमी बनी रहती है, ये तकनीकें कार्बन फार्मिंग को मजबूती देती हैं और किसान इसके लिए सरकार से सब्सिडी भी हासिल कर सकते हैं।
• अवलोकन: इस योजना के तहत किसानों को एक मिट्टी का स्वास्थ्य कार्ड दिया जाता है, जिसमें उनकी जमीन की जांच के आधार पर सही उर्वरकों और बेहतर मिट्टी प्रबंधन के सुझाव होते हैं।
• प्रोत्साहन: जब किसान मिट्टी की ज़रूरत के अनुसार पोषक तत्वों का इस्तेमाल करते हैं और जैविक तरीकों को अपनाते हैं, तो न सिर्फ मिट्टी की सेहत सुधरती है बल्कि कार्बन फार्मिंग को भी बढ़ावा मिलता है। यह तरीका मिट्टी में कार्बन को सुरक्षित रखने में मदद करता है।
• अवलोकन: यह एक राज्य से प्रेरित योजना है, जिसका मकसद कृषि और उससे जुड़े क्षेत्रों में निवेश बढ़ाकर खेती को ज़्यादा मजबूत और लाभकारी बनाना है।
• प्रोत्साहन: योजना के तहत ऐसे प्रोजेक्ट्स को आर्थिक मदद दी जाती है जो टिकाऊ खेती को बढ़ावा देते हैं — जैसे कि कृषि वानिकी, संरक्षण जुताई और जैविक खेती। ये सभी उपाय कार्बन फार्मिंग की दिशा में ठोस कदम हैं।
• अवलोकन: यह योजना पूरे देश में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए चलाई जाती है, जिसका मकसद किसानों को ऐसे तरीके अपनाने के लिए प्रेरित करना है जो पर्यावरण के लिए सुरक्षित हों।
• प्रोत्साहन: किसानों को जैविक खाद, जैव-कीटनाशक और अन्य प्राकृतिक इनपुट के लिए आर्थिक मदद मिलती है। इससे न सिर्फ मिट्टी की गुणवत्ता बेहतर होती है, बल्कि रासायनिक चीजों पर निर्भरता भी घटती है जो कार्बन फार्मिंग के लिहाज से फायदेमंद है।
• अवलोकन: इस नीति का उद्देश्य किसानों को उनकी ज़मीन पर पेड़ और झाड़ियाँ लगाने के लिए प्रोत्साहित करना है ताकि खेती के साथ-साथ पर्यावरण को भी फायदा हो। यह जैव विविधता बढ़ाने और कार्बन को मिट्टी में सुरक्षित रखने में मदद करती है।
• प्रोत्साहन: जो किसान कृषि वानिकी अपनाते हैं, उन्हें सरकार की तरफ से आर्थिक और तकनीकी सहायता मिलती है और यह समर्थन न सिर्फ पर्यावरण के लिए अच्छा है, बल्कि कार्बन फार्मिंग को मजबूत करने में भी अहम भूमिका निभाता है।
• अवलोकन: SMAF, राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन का एक हिस्सा है, जो किसानों को अपनी ज़मीन पर पेड़ लगाने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिसका उद्देश्य खेती के साथ-साथ हरियाली भी बढ़ाना है।
• प्रोत्साहन: इस योजना के तहत किसानों को पेड़ लगाने के लिए सब्सिडी और वित्तीय मदद दी जाती है। इससे न सिर्फ मिट्टी में कार्बन संग्रहण बेहतर होता है, बल्कि खेत लंबे समय तक उपजाऊ और टिकाऊ भी बनते हैं।
• अवलोकन: यह मिशन राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (NAPCC) का एक अहम हिस्सा है। इसका मुख्य उद्देश्य देश में हरियाली बढ़ाना और जंगलों का बेहतर प्रबंधन करना है ताकि पर्यावरण संतुलित रहे।
• प्रोत्साहन: इस योजना के तहत पेड़ लगाने, जंगलों को फिर से विकसित करने और पर्यावरण की रक्षा करने वाले कार्यों को बढ़ावा दिया जाता है। ये सारी गतिविधियाँ वातावरण से कार्बन सोखने में मदद करती हैं, जिससे कार्बन फार्मिंग के लक्ष्यों को भी मजबूती मिलती है।
• अवलोकन: यह योजना राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) का एक उप-घटक है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों की महिला किसानों को आत्मनिर्भर और सक्षम बनाना है।
• प्रोत्साहन: योजना के अंतर्गत महिलाओं को जैविक खेती, कृषि वानिकी और टिकाऊ खेती की तकनीकों का प्रशिक्षण दिया जाता है। साथ ही, उन्हें जरूरी संसाधनों और वित्तीय सहायता तक आसान पहुंच भी मिलती है, जिससे वे पर्यावरण अनुकूल कृषि अपनाकर कार्बन फार्मिंग को आगे बढ़ा सकें।
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हालांकि कार्बन फार्मिंग से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और पर्यावरण को भी फायदा होता है, लेकिन इसे अपनाने में कई व्यवहारिक और संरचनात्मक चुनौतियाँ सामने आती हैं:
• मिट्टी की गुणवत्ता: कई क्षेत्रों में मिट्टी में पहले से ही जैविक पदार्थों की कमी होती है, जिससे उसमें कार्बन संग्रहण की क्षमता घट जाती है। ऐसी जमीन में अच्छे नतीजे पाने के लिए विशेष देखभाल और खेती के तरीके अपनाने की जरूरत होती है।
• भौगोलिक विविधता: भारत की विविध भू-आकृति जैसे पहाड़ी इलाक़े, ढलान वाली ज़मीन या तटीय क्षेत्र खेती की संभावनाओं को प्रभावित करती है। कुछ जगहों पर उपयुक्त फसलें उगाना मुश्किल हो जाता है, जिससे कार्बन फार्मिंग की रणनीतियाँ सीमित हो जाती हैं।
• फसल चयन की समस्या: हर इलाके की मिट्टी और मौसम के अनुसार फसल का चुनाव करना जरूरी होता है लेकिन कई किसान आज भी उन्नत बीजों या बेहतर किस्मों तक पहुँच नहीं बना पाते, जिससे उन्हे कार्बन फार्मिंग के पूरे लाभ नहीं मिल पाते।
• जल संकट: पानी की कमी खासकर सूखे या अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में बड़ी रुकावट है, क्योंकि पौधों की अच्छी वृद्धि और कार्बन अवशोषण के लिए पर्याप्त सिंचाई जरूरी होती है।
• आर्थिक सीमाएँ: छोटे और सीमांत किसान अक्सर लागत भर नहीं पाते नई तकनीकें अपनाना, जैविक इनपुट लेना या मिट्टी सुधार करना उनके लिए महंगा साबित हो सकता है।
• नीतिगत और संस्थागत समर्थन की कमी: अभी तक कार्बन फार्मिंग के लिए कोई स्पष्ट और मजबूत नीति नहीं है साथ ही, सामुदायिक भागीदारी और प्रशिक्षण की कमी के कारण यह तकनीक ज़मीनी स्तर तक पूरी तरह नहीं पहुँच पाई है।
कार्बन फार्मिंग की राह में आने वाली चुनौतियों से निपटने और इसे ज़मीनी स्तर पर लागू करने के लिए कुछ व्यावहारिक उपायों पर काम किया जा सकता है जैसे:
• मजबूत नीतियाँ और नियम: कार्बन फार्मिंग को बढ़ावा देने के लिए एक ठोस और स्पष्ट कानूनी ढांचा तैयार किया जाना चाहिए, जो किसानों को पर्यावरण के अनुकूल खेती के लिए प्रोत्साहित करे, इससे न सिर्फ जलवायु संकट से निपटने में मदद मिलेगी, बल्कि खेती भी ज़्यादा टिकाऊ और लाभकारी बन सकती है।
• सीधे प्रोत्साहन देना: सरकार को चाहिए कि वह जलवायु के अनुकूल तकनीकों को अपनाने वाले किसानों को उपकरण, सब्सिडी या आसान ऋण जैसी आर्थिक मदद दे जिससे किसानों में नई तकनीकों को अपनाने का भरोसा और रुचि दोनों बढ़ेगी।
• कार्बन क्रेडिट और कार्बन बैंक: किसानों को उनके द्वारा भूमि में संग्रहित किए गए कार्बन के बदले कार्बन क्रेडिट दिए जा सकते हैं, जिन्हें वे कंपनियों को बेचकर आय कमा सकते हैं इसके लिए 'कार्बन बैंक' जैसी संस्थाएं बनाई जा सकती हैं, जो इस पूरी प्रक्रिया को आसान और पारदर्शी बनाएँ।
• साझेदारी और सामूहिक प्रयास: सरकार, निजी क्षेत्र, वैज्ञानिक संस्थान और किसान संगठनों को मिलकर काम करना होगा और मृदा स्वास्थ्य की निगरानी, कार्बन को मापने की तकनीक और फंडिंग की व्यवस्था और इन सबके लिए सहयोगी ढांचा तैयार करना ज़रूरी है।
• मिट्टी की छिपी ताकत का उपयोग: भारत की मिट्टी में बहुत ज्यादा कार्बन सोखने की क्षमता है अगर इसका सही ढंग से उपयोग किया जाए, तो यह देश के नेट-ज़ीरो लक्ष्यों को पाने में बड़ा योगदान दे सकती है, इसके लिए जैविक खेती, फसल चक्र और मृदा संरक्षण तकनीकों को बढ़ावा देना होगा।
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भारत में कार्बन फार्मिंग न सिर्फ पर्यावरण की सुरक्षा का जरिया बन सकती है, बल्कि यह खेती को ज़्यादा टिकाऊ और लाभदायक बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम भी है, जब किसान कार्बन-न्यूट्रल तरीके अपनाते हैं, तो इससे मिट्टी की गुणवत्ता सुधरती है, पैदावार बढ़ती है और साथ ही जलवायु परिवर्तन की रफ्तार भी धीमी होती है।
सरकार की विभिन्न योजनाएं और सहयोगी पहलें किसानों को इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए जरूरी सहायता और संसाधन उपलब्ध कराती हैं। लेकिन इसके व्यापक असर के लिए केवल योजनाएं काफी नहीं है, ज़रूरत है जागरूकता फैलाने की, मजबूत नीतियों की और एक पारदर्शी कार्बन क्रेडिट सिस्टम की, जिससे किसान अपने प्रयासों का आर्थिक लाभ भी उठा सकें।
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