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आज के समय में जब पर्यावरण को लेकर जागरूकता बढ़ रही है, जैविक खेती एक स्थायी और पर्यावरण के अनुकूल विकल्प बनकर उभर रही है और यह खेती का एक ऐसा तरीका है जिसमें रासायनिक उत्पादों से दूरी बनाकर प्राकृतिक संसाधनों पर भरोसा किया जाता है। इसमें न केवल फसलें उगाई जाती हैं, बल्कि पशुपालन भी एक अहम हिस्सा होता है। इस लेख में हम भारत में जैविक खेती के प्रकार, उसके तरीके, फायदे और इसमें आने वाली चुनौतियों के बारे में विस्तार से जानेंगे।
जैविक खेती एक ऐसी कृषि प्रणाली है जो ज़मीन की सेहत बनाए रखने, जैव विविधता को बचाने और रासायनिक खाद, कीटनाशक, जीएमओ जैसे कृत्रिम साधनों से बचने पर ज़ोर देती है। इसमें फसल उगाने और पशुओं की देखभाल के लिए प्राकृतिक तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है इसका मकसद है, ऐसा खाना पैदा करना जो शुद्ध हो, पोषण से भरपूर हो और साथ ही पर्यावरण को भी नुकसान न पहुँचे। असल में, ये खेती का वो तरीका है जो आज की ज़रूरत के साथ-साथ आने वाले कल का भी ध्यान रखता है।
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भारत की विविध जलवायु और खेती की परंपराएं जैविक खेती के कई रूपों को अपनाने के लिए तैयार हैं अलग-अलग इलाकों में, किसानों ने अपने अनुभव और ज़रूरतों के हिसाब से जैविक खेती के अलग-अलग तरीके अपनाए हैं।
आजकल लोग फिर से प्राकृतिक खेती की ओर लौट रहे हैं, और इसकी सबसे बड़ी मिसाल है ऑर्गेनिक फार्मिंग। इसमें बिना केमिकल्स के खेती होती है, जिससे न सिर्फ हमारी सेहत अच्छी रहती है बल्कि ज़मीन और पर्यावरण भी साफ़-सुथरे बने रहते हैं, आइए जानते हैं इसके कुछ अहम फायदे:
1. पर्यावरण के लिए फायदेमंद:
रासायनिक दवाओं से दूरी: जैविक खेती में किसी तरह के केमिकल या सिंथेटिक खाद/दवा का इस्तेमाल नहीं होता, इससे मिट्टी खराब नहीं होती और पानी भी साफ़ रहता है।
प्रकृति के साथ तालमेल: ऐसी खेती में पेड़-पौधे, कीड़े-मकोड़े और जानवर सबको अपनी जगह मिलती है जिससे जैव विविधता बनी रहती है।
जलवायु बदलाव में मददगार: जैविक तरीके से खेती करने से ज़मीन में कार्बन जमा रहता है, जिससे ग्लोबल वॉर्मिंग जैसी समस्याएं थोड़ी कम हो सकती हैं।
2. हमारी सेहत के लिए बेहतर:
बिना ज़हरीले अवशेष: जैविक फल-सब्ज़ियां किसी भी तरह के कीटनाशक या जीएमओं बीज से नहीं उगतीं, इसलिए ये हमारे शरीर के लिए सुरक्षित होती हैं।
पोषण से भरपूर: अच्छी मिट्टी और नेचुरल तरीका अपनाने से इनका स्वाद और पोषण दोनों ही ज्यादा बेहतर होते है।
3. स्वाद और ताज़गी:
बहुत से लोग मानते हैं कि ऑर्गेनिक खाना ज्यादा स्वादिष्ट होता है, जिसमें न ही कोई मिलावट होती हैं और न कोई तेज़ रसायन, सिर्फ असली स्वाद और पोषण युक्त भोजन।
4. टिकाऊ और स्थायी खेती:
मिट्टी की ताकत बनी रहती है: जैविक तरीकों से खेत की उर्वरता सालों-साल बनी रहती है।
कम ऊर्जा की जरूरत: इसमें मशीनों और रसायनों पर ज़्यादा निर्भरता नहीं होती, जिससे डीज़ल-पेट्रोल की खपत भी कम होती है।
5. गांवों और स्थानीय बाज़ारों को बढ़ावा:
जैविक खेती अक्सर छोटे किसान करते हैं, जो सीधे स्थानीय मंडियों तक सामान पहुंचाते हैं, इससे न सिर्फ ताज़ा सामान मिलता है बल्कि गांवों में रोज़गार भी बढ़ता है।
जैविक खेती भले ही सेहत और पर्यावरण के लिए अच्छी मानी जाती है, लेकिन इसके कुछ नुकसान भी हैं जो किसान इसे अपनाना चाहते हैं, उन्हें इन बातों को भी समझना चाहिए:
1. पैदावार थोड़ी कम हो सकती है: रासायनिक खाद और तेज़ कीटनाशकों के बिना खेती करना आसान नहीं होता, इसी वजह से जैविक खेतों में फसल की पैदावार अक्सर पारंपरिक खेती से कम होती है।
2. खर्चा ज्यादा आता है: जैविक खाद बनाना हो या कीटों से बचाव करना ,इसमें मेहनत भी ज्यादा लगती है और पैसा भी। जिससे खेती का खर्च बढ़ जाता है, और आम किसान के लिए ये एक चुनौती बन जाती है।
3. बाज़ार में दाम का झोल: ऑर्गेनिक माल अक्सर महंगा बिकता है, लेकिन हर बार अच्छी कीमत मिले ये जरूरी नहीं। बाज़ार में दाम ऊपर-नीचे होते रहते हैं, जिससे किसानों को आमदनी का भरोसा नहीं रहता।
4. कीड़े-मकोड़ों से निपटना मुश्किल होता है: जैविक खेती में रासायनिक कीटनाशक नहीं चल सकते। तो फिर देसी तरीके अपनाने पड़ते हैं और यह हमेशा काम करें, ऐसा जरूरी नहीं। कई बार फसल खराब भी हो जाती है।
5. बदलाव का वक्त कठिन होता है: अगर कोई किसान पारंपरिक खेती छोड़कर जैविक खेती अपनाना चाहे, तो खेत को पूरी तरह जैविक मान्यता मिलने में 2-3 साल लगते हैं। इस बीच में फसल भी कम होती है और सर्टिफिकेशन का खर्चा अलग से आता हैं।
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भारत में जैविक खेती कोई नया चलन नहीं है ये तो हमारे बाप-दादाओं की परंपरा रही है, अब जब फिर से लोग ज़हर-मुक्त खेती की तरफ लौट रहे हैं, तो जरूरी है कि हम इन देसी तरीकों को समझें और अपनाएं। नीचे कुछ प्रमुख जैविक पद्धतियां दी जा रही हैं, जो खेती को टिकाऊ और ज़मीन के लिए फायदेमंद बनाती हैं:
1. ज़ीरो बजट प्राकृतिक खेती (ZBNF):
जीवामृत और बीजामृत: ये देसी गाय के गोबर, गोमूत्र, गुड़ और बेसन से बनाए जाते हैं। ये खेत को ताकतवर बनाते हैं और बीज कि शुरुआत मजबूत रुप से करते हैं।
मल्चिंग: फसल कटने के बाद बचे हुए पत्ते और तिनके मिट्टी पर बिछा देने से नमी बनी रहती है और घासफूस नहीं उगती साथ ही मिट्टी की सेहत सुधरती है।
फसल चक्र: हर बार एक ही फसल ना बोकर बदल-बदलकर खेती करने से ज़मीन थकती नहीं, और कीट-बीमारी भी कम लगती है।
2. जैविक खाद और कम्पोस्ट:
वर्मी कम्पोस्ट (केंचुआ खाद): केंचुए जैविक कचरे को बढ़िया खाद में बदलते हैं, जिससे ज़मीन को ताकत मिलती है।
देशी खाद: गाय-भैंस का गोबर, मुर्गीपालन का अपशिष्ट, ये सब मिलाकर बनाई गई खाद मिट्टी को उपजाऊ बनाती है।
3. जैव उर्वरक और सूक्ष्म जीवों का उपयोग:
राइजोबियम, माइकोराइज: खास फसलों के लिए ये मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों को पौधों तक पहुंचाने में मदद करते हैं।
ट्राइकोडर्मा, स्यूडोमोनास: ये सूक्ष्म जीव फसलों को बीमारियों से लड़ने में मदद करते हैं ,यह एक बिल्कुल नेचुरल तरीका।
4. मिश्रित खेती और विविधता:
इंटरक्रॉपिंग, मिक्स क्रॉपिंग: एक ही खेत में दो-तीन तरह की फसलें उगाने से मिट्टी को ज्यादा पोषण मिलता है और कीटों का प्रकोप भी कम होता है।
पॉलीकल्चर: जैसे एक बाग में सब कुछ फल, सब्ज़ी, मसाले उगाये जाते है इससे ज़मीन भी ठीक रहती है और आमदनी के कई रास्ते भी खुलते है।
5. कीट और रोगों का प्राकृतिक प्रबंधन:
नीम का इस्तेमाल: नीम की खली, नीम तेल या नीम का काढ़ा ये सब कीटों को भगाते हैं वो भी बिना ज़हर डाले।
साथी पौधे (कमपनियन क्रॉप): जैसे टमाटर के पास तुलसी ,या मिर्च के पास गेंदा लगाना ये कीटों को दूर रखते हैं।
6. देसी बीजों की सुरक्षा:
हिरलूम वैरायटी और बीज बचाना: जो बीज पारंपरिक तरीके से चलते आए हैं, उन्हें सहेजना जरूरी है साथ ही ये मौसम के अनुसार ढलते हैं और फसल की गुणवत्ता को बनाए रखते हैं।
7. पशुपालन के साथ खेती:
गाय आधारित खेती: देशी गाय का गोबर, मूत्र, दूध सब कुछ खेती में काम आता है और इससे खेत का खर्च भी घटता है और मिट्टी की ताकत भी बढ़ती है।
8. मिट्टी और पानी का संरक्षण:
नो टिल फार्मिंग (शून्य जुताई): बार-बार जुताई न करके मिट्टी की नमी बचती है और कटाव भी कम होता है।
कवर क्रॉप: खाली खेतों में ढकने वाली फसलें बोई जाती हैं, जो मिट्टी को धूप-बारिश से बचाती हैं।
9. लोक ज्ञान का उपयोग:
हमारे गांवों में पीढ़ियों से खेती के जो घरेलू नुस्खे चलते आए हैं जैसे राख का उपयोग, लहसुन-नीम का घोल ये सब आज के विज्ञान से कम नहीं हैं। इन्हें भी अपनाना ज़रूरी है।
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भारत में जैविक खेती सिर्फ खेती नहीं, बल्कि एक सोच है , जो धरती, सेहत और भविष्य की चिंता करती है। जब किसान ज़ीरो बजट खेती और जैविक खाद और देसी उर्वरकों जैसे तरीकों को अपनाते हैं, तो वे सिर्फ फसल नहीं उगा रहे होते, बल्कि मिट्टी को ज़िंदा रख रहे होते हैं।
ये तरीका हमें रासायनिक ज़हर से बचाकर ताजगी भरा, पोषण से भरपूर खाना देता है और गांव की अर्थव्यवस्था को भी मज़बूत करता है।हाँ, इसमें मुश्किलें भी हैं जैसे -जागरूकता की कमी, सर्टिफिकेशन की झंझट और बाज़ार तक पहुँचने की दिक्कतें। लेकिन अगर किसान, विशेषज्ञ और सरकार मिलकर काम करें, और आपसी ज्ञान साझा करें तो जैविक खेती भारत के लिए एक मजबूत और टिकाऊ विकल्प बन सकती है।
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